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2 अगस्त 2010

चलने की बीमारी (चुटकुले)

(1) प्रेमी- 'प्रिये, आज मुझे नींद में चलने की बीमारी के कारण भारी शर्मिंदगी उठानी पड़ी।'
प्रेमिका- 'क्यों? क्या हुआ।'
प्रेमी- 'रात को मैं नींद में चलते-चलते जुहू तट पर पहुँच गया और सुबह जब लोगों ने जगाया तो मुझे बड़ी शर्म आई।'
प्रेमिका- 'तो क्या हुआ। तुम नाइट सूट तो पहने ही होंगे ना।'
प्रेमी- 'तुम्हें पता नहीं कि मुझे सोते समय कपड़े पहनने की आदत नहीं है।'


(2) पिता (युवा बेटी से)- 'बेटी! पिकनिक पर जरूर जाओ, पर अंधेरा होने से पहले घर जरूर लौट आना।'
युवा बेटी- 'ओह पापा...! अब मैं कोई बच्ची थोड़े ही हूँ।'
पिता- यह तो मैं भी जानता हूँ। इसलिए तो कह रहा हूँ।'


(3) वकील (आरोपी से)- बंदूक पर तुम्हारी उंगलियों के निशान पाएँ गए हैं, खून तुमने ही किया है।
आरोपी- ये झूठ है! ऐसा हो ही नहीं सकता है।
वकील- क्यों नहीं हो सकता?
आरोपी- क्योंकि खून करते वक्त तो मैंने दस्ताने पहन रखे थे।


(4) रमन- यार! तुमने ये कान में बाली पहनना कब से शुरू किया?
चमन- जब से मेरी पत्नी मायके से वापिस आई है।
रमन- तो क्या! वो मायके से तुम्हारे लिए बाली लेकर आई है?
चमन- नहीं, ये बाली उसने मेरे बिस्तर से बरामद की है।


(5) सिनेमा हॉल में एक युवती को अपने प्रेमी से अलग सीट मिली तो उसने अपने प्रेमी को अपने पास वाली सीट पर बुलाने के खयाल से अपनी बगल में बैठे युवक से पूछा- क्या आप अकेले है?
नौजवान ने धीरे से जवाब दिया- इस समय न पूछो, मैं अपनी पत्नी और बच्चों के साथ हूँ।

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