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5 अप्रैल 2010

दूर तक निगाह में..

दूर तक निगाह में खामोशियाँ हैं
सामने गुलाब है पर वो जाने कहाँ हैं

गुलाब की खुशबू गुलाब-सी रंगत
है जिनके पास वो जाने कहाँ हैं

ख़्वाबों में आते हैं जो ख़्वाब बनकर
मैं ढूँढूँ उन्हें पर वो जाने कहाँ हैं

मेरे ख़्वाब उनकी ही गलियों में खोये
हम जिनमें खोये वो जाने कहाँ हैं
दूर तक निगाह में. . .

चमन में हैं फूल उनमें हूँ मैं भी
मगर जो हैं माली वो जाने कहाँ हैं

उनके संदेशे का है इंतज़ार
जो हैं डाकिए वो जाने कहाँ हैं

उठती हैं नज़रें क्यों राहों की जानिब
मेरा हमसफर तो न जाने कहाँ हैं

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