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3 अप्रैल 2010

ज़िन्दगी बड़ी...

ज़िन्दगी बड़ी नागवार गुज़री है !
क़रार पा के ये, बेकरार गुज़री है !!

गमों की शाम भी आई थी तसल्ली देने !
करीब आके मेरे अश्क़बार गुज़री है !!

शम्मा की लौ में जलने की तमन्ना लेकर !
तड़प - तड़प के सहर बार बार गुज़री है !!

शज़र उदास है,मौसम भी है धुआं - धुआं !
नज़र चुरा के अबके बहार गुज़री है !!

मेरे क़ातिल मेरे मुंसिफ के इशारों पर !
रिहाई मुझसे अब दरकिनार गुज़री है !!

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